लक्ष्मण प्रसाद
लोक विद्या विचार हमारे अंदर बहुत पहले से एक अंदर ये विचार रहा है और जब हम चीजों को देखते थे बहुत सी बातें तो ये महसूस होता था कि कहीं ना कहीं से अन्याय जो लोग मेहनत कर रहे हैं उनके साथ बहुत अन्याय इस पर भी मेरा का चिंतन ये हुआ कि पढ़ लिख लिए है लेकिन जो काम वो करते हैं वहां उसकी पढ़ाई लिखाई की वैसी जरूरत नहीं है वो ना भी पढ़े रहे तो भी मामूली लिखने पढ़ने तक का भी ज्ञान हो तो भी काम हो सकता है उसके बावजूद जो लोग शोषित समाज दल से थोड़ा जुड़ा हुआ तो हमारे विचारों को बड़ा बल मिला वहां भी इस ढंग की बातें और सोचने विचारने वाले लोग थे और श्रम की प्रतिष्ठा और ये सारी बातें वहां पर भी थी जब लोकविद्या विचार से मैं जुड़ा तो वो जगह शायद मुझे फिट बैठ गया जो मैं सोच रहा था पहले से मेरे अंदर जो द्वंद उसका सटीक जवाब यहां पर मिल गया हम चीजों को न्याय अन्याय खासतौर से जो शिक्षा के बल पर शोषण की बात ये मुझे काफी उेलित किया समाज में और राजनीति में भी तमाम नेताओं के जब हम भाषण सुनते हैं तमाम लोग समाज में जब बोलने लगते के मारफत ही सारी [संगीत] दुर्व्यवस्थाएं हैं सब कुछ पढ़े लिखे समाज ने ही सारी दुर्व्यवस्थाएं फैला रखा है जो जितना ज्यादा पढ़ लिख लिया उसका समाज से संवेदना भी उतना ज्यादा खत्म हो गया होंगे कि शिक्षा से कुछ चीजें तो व्यक्ति प्राप्त कर सकता है पढ़ने लिखने आ सकता है बहुत सी चीजें को समझने का वो साधन हो सकता है शिक्षा के मारफत कुछ व्यक्तिगत विकास वगैरह सब हो जाते हैं लेकिन सार्वजनिक दावा के रूप में प्रस्तुत की जा रही है चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत कक्षा छ तक पढ़े एक लगभग अनपढ़ या बहुत मामूली पढ़े लिखे व्यक्ति उनके अंदर जो समझ थी जो जगदीश सिंह यादव आंदोलन कर रहे थे बिना बुलाए चौधरी महेंद्र सिंह टिकटैत यहां पर आए और इनके आंदोलन को धार दिया इनके जो काम शासन प्रशासन को स्वतः करना चाहिए था तो एक संवेदना थी उनके अंदर न्याय का की समझ न्याय और अन्याय की समझ उनके अंदर थी वो न्याय और अन्याय को ठीक ढंग से समझते थे बिजली के सवाल पर जो मांगे थी किसानों की चाहे वो गन्ने के किसान हो धान गेहूं के किसान हो किसी भी तरह के किसान हो गन्ने के किसानों की समस्या दान का था घटतौली का था सरकारी खरीद हो रही है अगर किसान के ये जो न्याय की बात है भाईचारा की बात है संवेदना की बात है ये सारी चीजें अह मीटिंग में बैठे ये ये दर्शाता है कि ये पढ़ा लिखा होने की जो मजदूर लोग कहते हैं हम उन्हें मतलब उन्हें भी एक कारीगर के रूप में मानते हैं किसी ना किसी तरह की कारीगरी आदिवासी भी हैं छोटे-छोटे दुकानदार हैं कलाकार है महिलाएं ये शायद नहीं उसकी उतनी मान्यता अब नहीं रह गई इन बीए पढ़ के भी व्यक्ति उसकी लेकिन ज्ञान की जो बातें हुई जो इस पद के मारफत हुई थी उसके हिसाब से जैसे उसमें वो कहा गया ज्ञान ये एकदम बिल्कुल स्पष्ट बात है अब ज्ञान किस तरह का अब जैसा आदमी काम करता है उसी तरह का ज्ञान हो जाता है पढ़ाई लिखाई करने वाले लोग वो भी उनके पास ज्ञान है ये नहीं कि उनके पास हम कह रहे हैं कि ज्ञान नहीं है उनके पास भी वो जो पढ़ते हैं उसका ज्ञान है जो की समझ है वनस्पतियों की समझ है इनकी एक दुनिया है बकायदा और इसमें किसी को
सुनील सहस्रबुद्धे
… हम लोग आपस में बैठ हल के अंदर य नजा थोड़ दूर तक जा सकते उन सवालो को बना सकते जो बढ़िया से पूछे जा सके जिनके जवाब े जा सके य सब प्र काम कर सकते है लेकिन आप कए की हमारे डायलग से थ हो जाए कर ये नहीं हो सकता उसके लिए तो larger society में जाना होगा नॉलेज के दुनिया में enter करना वहा क्या है इसको … आई डोंट नो … अगर लंबा हो रहा तो आप रोक दें … बाद में कर सकते हैं .. हाँ ठीक है बस एक बात हम फाइनली कह (दें) इसमें ये ordinary life और लोकविद्या ये दो चीज है जिनके साथ में मैं आपको रिमाइंड करूंगा न गांधी विल सत्य के साथ अहिंसा का नाम लिए बगैर वो बात नहीं कर रहे ही नीड टू फंडामेंटल कैटेगरी लेट नेवर फॉरगेट एक फंडामेंटल कैटेगरी ि आपको य जो जितने पॉपुलर र आपको म काल माक्स नकिंग न अच्छा बुरा क्या है य लेकिन दोसे ही हमारे केस में लोक विद्या ए न लोक विद्या और सामान न इसको आप पुराने फ उस रिड्यूस कीजिए तो वन इज नॉलेज अनदर इज बीइंग बी ई आई एनज बी नॉलेज और बीइंग के बीच का ये रिस्ता है एपिस्टम जीी और अटलजी के बीच का ये रिश्ता है इसमें कभी नॉलेज की लॉजिकल प्रायोरिटी डिपेंड फम वेर यू आर एंड इन व्ट सिचुएशन व्ट सिचुएशन यू आर डीलिंग विथ कभी नॉलेज की प्रायोरिटी है कभी बीइंग की प्रायोरिटी कभी ऑटोलॉजिकल डिस्कशन आपको ओपनिंग देता है तो कभी एमजिकल डिस्कशन ओपनिंग देता है हम ये मान के नहीं चलते हैं लोक विद्या मूवमेंट डज नॉट सेट लोक विद्या में रिड्यूस करके चीजों को देखा जाए ऑर्डिनरी लाइफ और लोक विद्या की जो डायलेक्टिक है जो आपसी रिलेशन है उसके बीच में कम बेसी कभी इसमें कभी उसम इस तरह से देखना पड़ता है ये मिलेगा मार्क्स में गो टू द इकोनॉमिक एंड फिलस मैक ही नीड्स टू कैटेगरी नेमली एनेशन एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी टू कंस्ट्रक्ट द रेस्ट ऑफ हि लद ही रिड्यूस प्राइवेट प्रॉपर्टी आल्सो टू एने वहा थोड़ा दिक्कत आएगी लेकिन और चीजों का निर्माण करने के लिए फिर दो चीजों की जरूरत है एक में से सबका निर्माण फिर नहीं हो सकता कि तो एवरीथिंग ट्रेड मार्केट सबकी कैटेगरी का निर्माण आप कर लेंगे प्राइवेट प्रॉपर्टी और एनेशन के साथ तो इसे अगर शुरू करेंगे ये कह रहे है सत्य और सम यू कां डू व वो नॉलेज और दन से रिलेटेड हो किसी और ढंग से वो आइडिया एक्सप्रेस करते हो जैसे सत्य और अहिंसा का है उनका वो एटली नॉलेज ऑफ बींग में फिट नहीं होगा किसी और ढंग से आएगा जो यहां का होगा शायद नॉलेज एंड बी का तो अगेन यूरोपियन ये है फमले है य बात …
असीम श्रीवास्तव
… लेकिन अगर यह मानिए आप कि आपका एक्सपीरियंस कोई कंट्रोल कर तो फिर आप कैसे सीखेंगे और आज की दुनिया में जहां सबके सामने स्क्रीन है आपका एक्सपीरियंस पूरे टाइम कंट्रोल हो रहा है पूरे टाइम आपको एक दायरे में डाला जा रहा है जहां वो निकले आपको वापस किसी कैटेगरी में खींच लिया जा रहा है और वो उसके लिए इससे पावरफुल टेक्नोलॉजी अभी तक इंसान ने चार्ज नहीं की दिस आई कॉल कल्चरली रेडियो एक्टिव वेपन सीधी सी बात है हमलावर तक की बात करें यही है आज का तरीका जो चला गया वो सवाल कर रहा था ना कैसे हमला हो रहा है तो जाहिर है कैसे हमला हो रहा है उसमें कोई ज्यादा बात की जरूरत नहीं है सबके सामने कमांड है आपके पॉकेट में उसका तो और यहां ये रुकने वाली नहीं है ये सभ्यता जिस जहां तक मैंने वेस्ट को समझा है वहां 15 20 साल जी के भी समझा है यहां रुकने वाली नहीं है ये घमासान होने वाला है अगर यहां नहीं तो वहां वहां नहीं तो कहीं और लेकिन ये चलता रहेगा जब तक ये पूरी सभ्यता ढह नहीं जाती गांधी जी ने जो स्वराज में कहा है इट्स न डेज वंडर जब तक वो स्टेटमेंट आम जनता के सामने सिद्ध नहीं हो जाता ये सभ्यता रहेगी कायम और सबके ऊपर हावी होने की कोशिश प्रयास इसका हमेशा रहेगा तो ये प्रहारवादी सभ्यता है और शुरू से रही है और साइंस उसी का भाग है हम तो ऐसे देखते हैं साइंस को साइंस को इससे आप अलग नहीं कर सकते नॉलेज और बीइंग की आपने बात की बिलकुल सही बात है तो साइंस इस नथिंग इट डस नॉट गिव यू पावर सीधी सी बात है नीचे में पूरी फिलोसफी डाली थी बिलकुल पावर की जो बिलकुल सही है यूरोप और वेस्ट के संदर्भ में वो बिलकुल सही सोच है एंड इट्स नॉट ओनली एनी विल पावर आई हाउस्ट पावर उससे मेरा मतलब है जो गांधी जी कहते थे कि हमारे हाथ में मी्स होते हैं तरीके होते हैं मेथड होता है हमारे हाथ में परिणाम नहीं होता है लेकिन हम ऐसे एक्ट करते हैं कि परिणाम हमारे हाथ में है और मीन्स कोई भी उसके लिए वाजिब है और ये बिलकुल गलत सोच है तो गांधी जी को अगर एक सेंटेंस में आपको समराइज करना है कि उनका वेस्ट के प्रति वेस्टर्न सिविलाइजेशन में क्या क्रिटिक था तो ये था कि दंड जस्टिफाई द मीन्स इज द रूलिंग फिलोसफी ऑफ द मॉडर्न एंड व्हेन द रियलिटी ऑफ़ लाइफ ओनली थिंग यू हैव इन योर कंट्रोल एक्चुअली द मीन्स नॉट द एंड अब कोई आपने अगर बम बनाया है जो कि हवाई जहाज से गिराया जा सकता है मीन्स आर आपको पहले से पता है अगर उससे एक बच्चे की एक उंगली भी उससे जाए तो द एंड विल नॉट जस्टिफाई द ठीक है लेकिन हमारी मोरालिटी इतनी करप्टेड है आधुनिकता है मोरालिटी इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि हमें सरल सी बात नहीं समझ आती …
चित्रा सहस्रबुद्धे
तो मैं शुरुआत करती हूं कि गांधी विद्या संस्थान में जब हम लोग रहते थे तो वो शहर के एकदम उत्तरी इसमें है छोर है जहां पर वरुणा नदी और गंगा नदी का संगम है जहां कृष्णा मूर्ति फाउंडेशन है उस फाउंडेशन के पीछे मछुआों के छोटे छोटे किसानों के गांव है मल्लाहल जातियां है वैसे भी कल जैसे बात हुई बनारस का उत्तरी हिस्सा गोदोलिया से उत्तरी हिस्सा कारीगर बस्तियां है सारी और गोदोलिया से लंका के तरफ जाएंगे तो संपन्न लोगों का जिसमें व्यापारी भी है जिसमें पढ़े लिखे लोग भी है उनका हिस्सा है तो शहर इस तरह से थोड़ा बटा हुआ है और बाकी पश्चिम उत्तर जो भी है वो इसी के शहर का ये विभाजन कहते हैं मतलब कि बनारस पहले गंगा जी के किनारे था ही ये शहर बनारस के किनारे ना होकर वरुणा के किनारे ऐसी कहानियां है कितने सही है हम नहीं बता सकते लेकिन पुरानी कहानियों में अगर हम लोगों को प्रासंगिक आज के लिए लगती है तो एक कहानी है जिसे हम सुनाना चाहेंगे कहते हैं कि पौराणिक काल में राजा देवदास यहां के राजा थे और राजा देवदास शिव भक्त थे इतने ज्यादा शिव भक्त थे कि वो और किसी को नहीं पूजते थे किसी देवता का मंदिर नहीं होता था केवल शिवजी का मंदिर होता था तो शिवजी उसके पहले मतलब ये दिखाया है कि शिवजी में और देवदास में कैसी वार्ता होती थी उनका आपस में बैठना बात करना ये सब उस कहानी में है मित्र व केवल भक्त और देव के रूप में उनका दक्षता नहीं था तो कुछ तभी हुआ जिससे एक बार शिव जी ने उनसे पूछा कि तुम क्यों नहीं और देवताओं को पूजते हो या उनको काशी में रहने की जगह देते हो तो बोला नहीं मैं आपका भक्त हूं और मैं किसी को नहीं पूजूंगा तो शिवजी नाराज हो गए और उन्होंने कहा तो फिर मैं जाता हूं मैं यहां नहीं रह सकता फिर मैं चला जाता हूं और वो वरुणा गौतम गोमती नदी और गंगा जी का जहां संगम है वहां चले गए तो जब शिवजी वहां चले गए तो प्रजा के कुछ कुछ छुटपुट लोग भी वहां जाकर बसने लगे तो एक बनारस वहां भी हो गया गोमती और गंगा के किनारे देवदास को चिंता हो गई की ये क्या है ये तो जब खाली हो गई काशी तो एक एक कर देवता आने लगे ऐसी कहानी इस तरह से लिखी है कि एक एक कर देवता आने लगे और काशी बस में बस गए सूर्य भगवान उस समय के जो भी हो देवता सारे मंदिर उनके आते अब वो राजा देवदास ने लाए या वो खुद आए ये उसमें स्पष्ट नहीं है लेकिन हम मानते हैं कि राजा के ने लाए और तब वो शिवजी के पास गए धीरे धीरे प्रजा भी आने लगी शिवजी ने कहा कि अब मैं आ सकता हूं यहां और वो फिर काशी आकर बस गए तो इस कहानी से शिवजी ने जो स्पष्टता जो वार्ता की गोदास से उसमें उन्होंने कहा कि देखो एक की पूजा करना ये नैतिक नहीं है अगर तुमने मेरी ही एक देवता के रूप में पूजा की है तो ये नैतिकता के मूल्यों से खरी नहीं तुमको अनेक लोगों के साथ वही रिश्ता बनाना है जो मेरे साथ है तभी तुम भक्त हो सकते हो तो ये जो अनेक लोगों को बराबरी का ये दर्जा देते हुए मतलब समाज में उसको स्थापित करना आग्रह रखना कि वैसा ही रहोगे तो तुम्हारा राज्य चलेगा ये इस कहानी से आता है और बनारस की ये परंपरा है अब बनारस में अनेक तरह के संस्कृति के और अनेक तरह के लोग आए हैं हर एक आप अगर इधर से चलेंगे राजघाट से उसको हम लोग भसासुर घाट कहते हैं और भसासुर घाट मतलब यू कहिए कि यहां पर एक व्यक्ति रहे जिन्होंने ओबीसी जातियों पर शोध किया है उन्होंने उस पर उस मंदिर का जिक्र किया है कि क्या कौन देवता है ये मतलब और क्या रिश्ता रहा अन्य देवताओं से पढ़ने जैसा है वो पढ़ना चाहिए कि अलग-अलग देवताओं में और अन्य जातियों के देवताओं में कैसा रिश्ता था तो वहां से आप अगर लंका की तरफ चले घाट घाट घाट मैं भूल गई क्या बोल रहे थे कि महसासुर के देवताओं की पहचान पे ओबीसी ने जो लिखा किसी ने ऐसा हो रहा है ठीक है तो वहां सुनाइए नहीं दिया आप क्या बोले से बोला वो एक एक घाट पर अलग-अलग प्रदेशों के लोगों की बस्ती है कर्नाटक की एक लोगों की बस्ती है उसके पहले गुजरात के लोगों की है महाराष्ट्र लोगों की है अह आंध्र के हैं मलयाली है फिर तमिल है तो उनकी बस्तियां है ऐसी विभिन्न अब ये कब आए हैं कैसे आए हैं किन परिस्थितियों में आए हैं अंग्रेजों से पहले आए हैं बाद में आए हैं ये सब शोध का विषय है और वो शायद इस पूरे देश के इतिहास को खोल के सामने रख देगा बनारस में रहने का एक बहुत बड़ा जो फायदा है वो ये है कि घर में ही विद्या है सारी आपको यहां बैठे पूरी दुनिया का ये जानकारी मिल जाती है …