लोकविद्या समन्वय समूह, इंदौर का बुलेटिन
रविवार, 20 अप्रैल 2025
मालवा-निमाड़ अंचल के लोगों का लोकविद्या का दावा
मालवा-निमाड़ अंचल में लोकविद्या समन्वय समूह, इंदौर और लोकविद्या कला केंद्र, इंदौर के लगातार चल रही मुहीम से अंचल में लोकविद्या विचार की एक पहचान बन रही है। यह निम्नलिखित प्रक्रियाओं में साफ़ नजर आती है।
- आदिवासी, किसान, कारीगर, छोटे-छोटे दुकानदारों और इन सबके परिवारों की स्त्रियों का ज्ञान एकजुट होकर, लोकविद्या सत्संगों के माध्यम से अपनी बात रखने लगा है।
- पुरूष और स्त्री दोनों की जोड़ी मिलकर नई-नई कला रचनाएँ बनाकर भी अपने ज्ञान का दावा रखने लगे हैं। इन्हीं जोड़ीयों को पारो-दरिया का नाम दिया है।
- गांव भकलाय और भीलामी में लोकविद्या बोल की झोपड़ी बनाई है जिसमें ज्ञान-पंचायत बैठाई जाती है।ऐसी लोकविद्या बोल की झोपड़ी का निर्माण अंचल के गांव-गांव में करने का मन बनाया है।
- अंचल के लोगों द्वारा लोकविद्या ज्ञान-यात्राएं निकाली जाती है। इन यात्राओं के माध्यम से अंचल के लोकविद्या हाटों को एक-दूसरे से जोडने का प्रयास हो रहा है।शुरूआत में गांव चोली और गांव गुलावड के हाटों में लोकविद्या सत्संग करना तय हुआ है।
- मालवा-निमाड़ अंचल लोकविद्या समन्वय समूह बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है। समन्वय समूह बनने सेअंचल की पारो-दरिया जोडियाँ अपने ज्ञान-आंदोलन की बात को आसानी से, अलग-अलग तरीकों से रख सकेगी।
पिछले महिने मार्च में गांव भकलाय से लोकविद्या-घाट, मण्डलेश्वर तक की लोकविद्या ज्ञान-यात्रा आयोजित की गई थी जिसमें लगभग बीस गांवों के लोगों ने बढचढ कर भागीदारी दिखाई है।
लोकविद्या ज्ञान-यात्रा में भागीदार
- गांव भकलाई: घनश्याम भाबर, सुशीला भाबर, शिवम भाबर, उर्मिला भाबर, जगदीश सिंह भूरिया, थावरी बुआ भूरिया, रामलाल पीपलदे,बागू बाई पीपलदे, लीला भाबर,लीला भूरिया,अनार बुआ भूरिया,दारासिंह दादा भूरिया, दयाराम सरपंच भूरिया, मनोहर सिंह भाबर, विनोद मालीवाड़, फूलचंद भाबर, पुनाबाई भाबर, पीहू भाबर, बाबूलाल भाबर, सकूबाई भाबर, मुकेश मालीवाड़, सविता मालीवाड़, सुकमा मालीवाड़।
- गांव नवरंगपुरा: मोहन सिंह औसरी, जीजा औसरी, नवल भाई औसरी।
- गांव भीलामी: करणसिंह भाबर, सविता भाबर, संध्या भाबर, रमेश बाबा, जादू भाबर ।
- गांव सिरसिया: चंदू सरपंच भाबर,नानूराम बारूड, श्याम बारूड।
- गांव बामनपुरा(मांडव): राधेश्याम निनामा, कालूसिंह मसारे।
- गांव सरायगरडोमी: बिलमनभाई बडूख्या।
- गांव खोकरिया: जगन गिरवाल ।
- गांव भूरीबईडी: प्रताप भाबर।
- गांव भुदरी: किशोर महाराज, पदम नायक, सिमरीष नायक, शिवराम भाबर, कुड़वा भाई यादव, कन्हैयालाल पाटीदार, एकवे यादव।
- गांव मेहतवाडा: रतन मारवाड़।
- गांव ढापला: राधेश्याम प्रजापत, रामू डाबर।
- गांव चोली: भगवान पाटीदार, कौशल भाई सेठ, सीताराम भाई, महादेव यादव।
- गांव बागदरा: गोलूभाई बारीया ।
- गांव अवलिया: देवराज बुंदेला।
- गांव पलासघाट: रामलाल डाबर, प्रेम डाबर,जवान बारूड, सुखदेव बारूड।
- गांव सिरायला माल: नारंगी बाई गावड।
- गांव गुजरमोहना: तोलसिंह मेडा, हरेसिंह गिरवाल।
- गांव झाडी गुजरमोहना: देवकरण, धनसिंह भूरिया।
- गांव आवल्या तलाव: आयुष बारिया।
- गांव काकडीया मउ: ताराचंद कटारिया, बाला कटारे।
- गांव बागलीया: राधेश्याम वखुनिया, लालू मकवाने।
वार्ड ज्ञान पंचायत सलारपुर दीनापुर की बैठक
रविवार 30 मार्च 2025
दिनांक 30 मार्च 2025 दिन रविवार को दिन में 3:30 बजे वार्ड ज्ञान पंचायत सलारपुर दीनापुर की बैठक पूर्व प्रधान श्री बच्चे लाल राजभर की अध्यक्षता में अमर शहीद जगदेव प्रसाद प्रतिमा स्थल सलारपुर में हुई। आज की बैठक में वार्ड के समस्याओं के ऊपर खासतौर से पेयजल, सार्वजनिक शौचालय और गरीबों के लिए बारात घर निर्माण करवाने की बातें हुई । आज की राजनीति और स्वराज पर भी चर्चा हुई। वार्ड ज्ञान पंचायत के बैठकों में और लोगों को शामिल किए जाने की आवश्यकता महसूस की गई।
आज की बैठक में लक्ष्मण प्रसाद, जय प्रकाश, राजकुमार, राम रतन, दिनेश कुमार, रामचंद्र, विजय कुमार, अरविंद, बच्चे लाल, बाबू लाल, रामबली, गीता देवी, राजेंद्र प्रसाद, महेंद्र प्रताप, सुजीत, सदानंद, अभिषेक शामिल हुए।
लोकविद्या ज्ञान-यात्रा
गुरुवार 6 मार्च 2025
मालवा-निमाड़ के लोकविद्याधरों का लोकविद्या का दावा
ज्ञान-यात्रा ने ग्राम भकलाय से लोकविद्या घाट, मण्डलेश्वर नरबदा माता के तट तक का रास्ता तय किया। इस ज्ञान-यात्रा का विवरण कुछ फोटो और विडियो के माध्यम से दे रहे हैं। बहुत आनंद और उत्साह के साथ लोगों ने अपनी बातें रखने का प्रयास किया है। आगे भविष्य में क्या कर सकते हैं वह भी लोग बता रहे हैं। लोकविद्या कला केंद्र, इंदौर और लोकविद्या कला केंद्र, भकलाय मिलकर काम करने की योजना बना रहे हैं। कलाकार, कलाप्रेमी और लोक विद्याधरों को लेकर लघु फिल्मों की श्रृंखला बनाने पर काम कर रहे हैं। यह लोकविद्या जन आंदोलन की गतिविधियों को आगे बढ़ाता है। इस सिलसिले में एक पारो-दरिया जोड़ियां केंद्र में ली गई है जो सतत कला जगत से संवाद करती है। फिल्म में अलग-अलग प्रकार के लोग नई-नई रचनाएं बनाने का प्रयास करते दिखाए गए हैं। फिल्मांकन का माहौल बनाने में कई दिन लग जाते हैं, लेकिन यह गतिविधि सतत चलते रहने वाली है जो लोगों को अपनी बात रखने के लिए अच्छा माहौल तैयार करती है।
लोकविद्या सत्संग और ज्ञान-यात्रा के कुछ : फोटो और विडियो
लोकविद्या समन्वय समूह, इन्दौर का कार्य
लोकविद्या समन्वय समूह (लो.स.स.) इन्दौर की पिछले कुछ वर्षों की गतिविधियों को कला के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से इन्दौर में लोकविद्या कला केन्द्र इन्दौर की स्थापना वर्ष 2022 में की गई। पिछले तीन वर्षों में विभिन्न कलाविधाओं में, कलाकारों और लोकविद्याधरों ने मिलकर निम्ननलिखित ई-नई बातें सामने लाई हैं जिन पर विचार और कार्य जारी है।
- कला, कलाकार, कलाप्रेमी और लोकविद्याधर मिलकर लोकविद्या दर्शन को केन्द्र में रखकर नई-नई रचनाओं की श्रंखला बना सकते हैं। यानी गांव-शहर में ऐसी हलचल पैदा कर सकते हैं जिसमें सामान्य लोगों में सक्रिय भागीदारी करने की ज्योत जल उठे। इस संदर्भ में गांव-शहर में कला समागम को किसी लोजआ की गतिविधि के साथ जोड़ कर किया जा सकता है। जैसे लोकविद्या ज्ञान-यात्रा, ज्ञान-पंचायत या अन्य।
- लोकविद्याधर समाज में स्त्री-पुरुष की जोड़ी, जहाँ-तहाँ मिलकर काम करती नज़र आती है।इन जोडियों को बहुत निकट से, गहराई से समझने पर ऐसा लगता है कि इनके पास लोकविद्या दर्शन को खोलने की असीमित क्षमता हैं। केवल पुरुष या केवल महिला के बनिस्बत जब यह जोडी मिलकर कोई बात रखती है तो वह बात सामान्य लोगों को छू जाती है क्योंकि वह उनके जीवन के कार्यों में भी सहज झलकती है।
- पारो-दरिया की जोड़ी एक मुट्ठी अनाज ज्ञान-घडे में देने की बात करती है। दावा रखती हैं कि किसानी की लोकविद्या के बल पर हम पूरे देश को स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन खिलाने की जवाबदेही लेनेको तैयार है।
- हाटों को सत् का स्थान बनाऐंगे। सत् सपता का आयोजन हाटों को जोडता है और लोकविद्या का दावा गढता है।
- मालवा-निमाड़ अंचल में भकलाय गांव में लोकविद्या कला केन्द्र बनेगा जो मालवा-निमाड़ अंचल लोकविद्या समन्वय समूह चलाएगा।
- सामान्य जीवन के बाशिंदे अनेक खूबियाँ लिए हैं। इनमें से जो लोग ज्ञान, गुरू या सत् के पीछे श्रध्दा से खड़े हैं उनमें ही यहां के सत्संगी आते हैं। लोकविद्या का विचार इन्हें रूचिकर लगता है। अन्यथा, अन्य समाजों में ज्ञान, गुरु, सत् से भिन्न कोई बात केन्द्र में है। इसलिए ऐसे समाजों में लोकविद्या की बात करना ज्यादा चुनौतियां लिए है।
- विभिन्न सत्संग मण्डलो को जोड़ कर और फिर उनके द्वारा हाटों को जोडते हुए, अनेक प्रकार की ज्ञान यात्राएं निकालकर सभी समाजों के लोगों तक लोकविद्या का दावा पहुंच सकता है।