.
विद्या आश्रम
उपस्थित सदस्य : लक्ष्मण प्रसाद, रामजनम, फ़ज़लुर्रहमान, कमलेश, राजेंद्र प्रसाद मानव, चित्रा, सुनील
विषय : मार्च 2026 तक की कार्य योजना
बहुजन स्वराज पंचायत 7,8,9 अक्टूबर, 2025 को विद्या आश्रम परिसर पर हुई और उसके बाद यह बहुजन ज्ञान विमर्श/संवाद की पहली बैठक थी. इस बैठक में बहुजन स्वराज पंचायत पर चर्चा हुई और सभी सत्र-संचालकों से अपने-अपने सत्र की एक छोटी रपट, अध्यक्ष मंडल और वक्ताओं की सूची के साथ रविवार 12 अक्टूबर की शाम तक इस समूह पर भेज देने का तय हुआ.
इसके अलावा बैठक में विद्या आश्रम से निम्नलिखित कार्यक्रम चलाने पर सहमति बनी.
1. | वाराणसी ज्ञान पंचायत : इसके तहत तीन कार्य किये जायेंगे जिसकी प्रमुख ज़िम्मेदारी संयुक्त रूप से लक्ष्मण प्रसाद, रामजनम, फ़ज़लुर्रहमान, हरिश्चंद्र, चित्राजी की होगी. |
कार्य | प्रमुख ज़िम्मेदारी | अवधि/दिन/समय |
सुर साधना का प्रकाशन | चित्रा, प्रेमलता, रामजनम | हर महीने में एक अंक |
वार्ड ज्ञान पंचायत | लक्ष्मण प्रसाद, फ़ज़लुर्रहमान | हर महीने का आखरी रविवार को |
लोकनीति संवाद | रामजनम, कमलेश | महीने में एक |
2. | लोकविद्या सत्संग | लक्ष्मण प्रसाद, कमलेश | हर महीने का आखरी रविवार | |
3. | बहुजन स्वराज पंचायत | बहुजन ज्ञान विमर्श/संवाद समूह | (अ) | 2 नवम्बर, 2025 को रिंग रोड के किसानों के साथ पहल राजेंद्र प्रसाद और कमलेश की |
(ब) | नवंबर में भोगांव ग्राम सभा, मिर्ज़ापुर पहल हरिश्चंद्र की | |||
4. | बहुजन स्वराज पंचायत, (ऑनलाइन) | रामजनम, लक्ष्मण प्रसाद, हरिश्चंद्र | हर महीने की 15 को 15 नवम्बर का विषय: बहुजन-समाज को क़र्ज़ की वैश्विक ज़ंजीर में बांधने का जाल | |
5. | सोशल मीडिया, वीडियो, फोटो | हरिश्चंद्र/फ़ज़लुर्रहमान/लक्ष्मण | सभी कार्यक्रमों की |
सभी कार्यों की प्रगति पर चर्चा व निर्णय विद्या आश्रम पर शनिवार की बैठकों में होगा.
चित्रा सहस्रबुद्धे
समन्वयक, विद्या आश्रम
.
विद्या आश्रम
उपस्थित सदस्य : कमलेश कुमार, फजलुर्रहमान अंसारी, राजेंद्र मानव, लक्ष्मण प्रसाद
विषय : शोध कार्य की प्रगति
सारनाथ, विद्या आश्रम में बहुजन ज्ञान विमर्श की बैठक हुई। इस बैठक में लोगों ने शोध कार्य की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत किया।फजलुर्रहमान अंसारी ने देवा शरीफ बाराबंकी में हाजी वारिस पाक उर्फ वारिस पिया सूफी संत के ऊपर लिखे लेख को पढ़कर सुनाया। भारत का मुक्ति संग्राम पुस्तक से सन्यासी विद्रोह के ऊपर अध्ययन करके लेख लिखेंगे साथ ही साथ इसी पुस्तक से बुनकरों का संग्राम (1700 ई से 1800 ई तक) का अध्ययन कर रहे हैं, इस पर भी एक लेख लिखेंगे।
कमलेश कुमार ने भर/राजभर साम्राज्य पुस्तक का अध्ययन आंशिक रूप से किया है । बैठक में उन्होंने अपना अध्ययन प्रस्तुत किया। चित्रा जी द्वारा पोस्ट में राजभर शोध संस्थान पर पूछे गए प्रश्न की जानकारी के लिए डांक्टर रामखेलावन जी से वार्ता की गई। उन्होंने बताया की राजभर शोध संस्थान मुंबई में ही संचालित है। भर/ राजभर साम्राज्य पुस्तक में वहां के लोगों के बारे में विस्तृत जानकारियां हैं। राजेंद्र मानव जी ने भी इस पुस्तक पर रुचि दिखाई।
लक्ष्मण प्रसाद स्वामी दादू दयाल के जीवनी के ऊपर पहले ही एक लेख लिख चुके हैं। आगे दूसरा लेख भी लिख रहे हैं। साथ ही साथ संत सुधा सार पुस्तक का अध्ययन भी जारी है।
वर्तमान समय में रेलवे की दो सबसे प्रमुख समस्याओं पर चर्चा हुई। पहली समस्या देश भर के लगभग सभी स्टेशनों पर शीतल पेयजल की बड़ी समस्या है। एक तो स्टेशनों पर जल का अभाव है, दूसरा जिन स्टेशनों पर जल है भी, आज गर्मी के समय लोग खोलता हुआ जल पीने को मजबूर हैं।
दूसरी बड़ी समस्या यह है की जनरल बोगी में लोग गाजर-मूली की तरह ठूंस कर यात्रा कर रहे हैं। उपर्युक्त दोनों समस्याओं के निराकरण के लिए मंडल रेल प्रबंधक वाराणसी को ज्ञापन देने और साथ ही साथ भारतीय रेल मंत्री और प्रधानमंत्री को भी इस समस्या से अवगत कराने की बात हुई। यह मांग की जाएगी कि भारत के सभी रेलवे स्टेशनों पर शीतल पेयजल को उपलब्धता सुनिश्चित हो। सभी रेलगाड़ियां में जनरल डिब्बो की संख्या सबसे ज्यादा रखी जाए । कुछ विशेष ट्रेनें चलाई जाए जिसमें सभी बोगी जनरल श्रेणी के हों।
बिजली के निजीकरण के विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा 4 जून 2025 को जिला मुख्यालय (शास्त्री घाट पर) आंदोलन किया जाएगा। इसमें भागीदारी की जाएगी।
लक्ष्मण प्रसाद
.
विद्या आश्रम
बैठक बहुजन ज्ञान विमर्श की शनिवार 26 अप्रैल 2025 की बैठक नहीं हो पाई अतः आज की बैठक में उस दिन के लिए तय मुद्दों पर भी बात हुई और निम्नलिखित बिंदुओं पर सर्व सहमति से निर्णय लिए गए.
- शोध कार्य के तहत शोधकर्ताओं के लिए मई माह के लक्ष्य
- अपने-अपने विषय से सम्बंधित साहित्य की सूची तैयार करना.
- अपने-अपने विषय से सम्बंधित वाराणसी और आस-पास के जानकार और विचारक लोगों से मिलना और उनकी सूची बनाना .
- प्रत्येक शनिवार की बैठक में अपने विषय से सम्बंधित जानकारियों को अपने रजिस्टर में दर्ज कर उसे प्रस्तुत करना.शोध कार्य के तहत शोधकर्ताओं के लिए मई माह के लक्ष्य
इन सभी कार्यों में अपने सलाहकारों से मदद लेंगे.
- आश्रम में पुस्तकालय में बैठ कर पढने, लिखने और आपस में वार्ता के दिन
- लक्ष्मण प्रसाद : सोमवार, मंगलवार और बुधवार शाम 5 बजे से 7 बजे तक
- रामजनम : सोमवार गुरूवार शाम 5 बजे से 7 बजे तक
- फ़ज़लुर्रहमान अंसारी: बुधवार शाम 5 बजे से 7 बजे तक
- कमलेश कुमार : सोमवार और शुक्रवार शाम 5 बजे से 7 बजे तकआश्रम में पुस्तकालय में बैठ कर पढने, लिखने और आपस में वार्ता के दिन
- शनिवार की बैठक की रपट लिखने की ज़िम्मेदारी बारी-बारी से सभी शोध कार्यकर्ताओं पर हो.
- बैठक में शोध कार्यक्रम में दिए गए विषयों की प्रस्तुति हुई।
फजलुर्रहमान अंसारी ने शोध कार्यक्रम के लिए संदर्भ पुस्तक अशार-ए-बनारस जो कि मौलाना अब्दुल सलाम द्वारा लिखी गई है और दूसरी पुस्तक मिजाजए-बनारस जो की बसंती रमन द्वारा लिखी गई का जिक्र किया। इन पुस्तकों से बुनकर समाज में शोध करने में काफी मदद मिलेगी। संदर्भ व्यक्ति में अमान अख्तर , डॉक्टर मो.आरिफ और इदरीश अंसारी तीनों सामाजिक कार्यकर्ता का नाम वार्ता के लिए रखा।
लक्ष्मण प्रसाद ने पूर्वांचल के संत महात्मा नामक पुस्तक का अध्ययन किया। इस पुस्तक में पवहारी बाबा, मोनी बाबा, देवरहा बाबा इत्यादि अनेक संतों के बारे में लिखा गया है, किंतु सभी संतो के बारे में चमत्कार का ही वर्णन अधिक किया गया है. उनके मौलिक विचार ,उपदेश, कार्य, दर्शन इत्यादि का वर्णन नहीं है।
इस समय संत दादू दयाल पुस्तक का अध्ययन जारी है। इस पुस्तक में जातियों के भेदभाव को समाप्त करने, हिंदू मुस्लिम एकता इत्यादि के बहुतेरे उपदेश लिखे हुए हैं। ये निर्गुण पंथ के संत थे। संत कबीर की भांति सरल- सहज अंदाज में जीने का इनका दर्शन है। इनके बारे में अध्ययन जारी है।
कमलेश कुमार महाराजा सुहेलदेव पर पुस्तक का अध्ययन कर रहे हैं। संदर्भ व्यक्तियों में राहुल राजभर और डा. रामखेलावन राजभर से संपर्क का कार्यक्रम हो चुका है। उन लोगों ने कुछ पुस्तकों का संदर्भ भी दिया है।
रामजनम ने अपने शोध कार्य के संदर्भ में डॉक्टर रामखेलावन राजभर जी से संपर्क किया। इन्होंने भर या राजभर साम्राज्य लेखक मंगल राजभर शोध प्रकाशन संस्थान मुंबई द्वारा प्रकाशित पुस्तक का संदर्भ दिया। इसके अलावा कुछ अन्य पुस्तकों का भी उन्होंने जिक्र किया। डा. रामखेलावन राजभर ने कहा कि बहुजन समाज को संविधान निर्माण के समय से ही पिछड़ा कहा जाने लगा। उन्होंने बताया कि नालंदा विश्वविद्यालय को खिलजी ने नहीं बल्कि ब्राह्मणों ने जलाया। बनारस शहर का नाम राजा बनार के नाम पर पड़ा जो राजभर जाति के थे। उन्होंने यह बताया कि महाराजा सुहेलदेव के भाई का राज्य भी बनारस में हुआ करता था। रामजनम जी ने ऐसे शोध से संदर्भित व्यक्तियों पुस्तकों की एक सूची बनाई है।
निम्नलिखित व्यक्तियों की सूची भी बने गई जिनसे मिलकर अधि जानकारी एकत्र होगी।
- प्रोफेसर प्रवीण यदुवंशी गाजीपुर बलिया।
- लोटन राम निषाद गाज़ीपुर राहुल राजभर वाराणसी।
- सुभाष चंद्र कुशवाहा देवरिया।
- रामजी यादव वाराणसी।
- राजेंद्र यादव सासाराम बिहार।
- योगेंद्र नारायण शर्मा पत्रकार वाराणसी।
- रणधीर सिंह, शिक्षक।
- प्रोफेसर कुलदीप मीणा इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
- खराबन राम का बेटा।
आज की बैठक में राम जी यादव द्वारा रखे गए प्रस्ताव की चर्चा हुई।उन्होंने प्रस्ताव रखा था की विद्या आश्रम परिसर में कुछ अच्छे सामाजिक फिल्म की प्रस्तुति की जाएगी, जिसमें 100-50 लोग उन फिल्मों को देखेंगे, और ये फ़िल्में प्रेरणादायी होंगी। इस प्रस्ताव पर सबकी आम सहमति बनी।
लक्ष्मण प्रसाद
.
प्रस्ताव: विद्या आश्रम का शोध कार्यक्रम
बहुजन ज्ञान विमर्श
27 मार्च 2025
- विचार :
यह शोध कार्यक्रम बहुजन-समाज की उज्जवल परम्पराओं की खोज है, जो हमें एक नये समकालीन राजनैतिक चिंतन की ओर ले जाये. सामान्य जीवन की परंपरा को बहुजन की परंपरा कहने से जो सामान्य है वह राजनीतिक हो उठता है. इसकी कुछ समानता महिला आन्दोलन के ‘पर्सनल इज़ पोलिटिकल’ के नारे के साथ देखी जा सकती है. इस स्थापना से भी की जा सकती है कि यह देश अपने गांवों और बस्तियों में बसता है. सामान्य जीवन के राजनीतिक होने का अर्थ है उस समाज की कल्पना, जिसमें अभिजात्य हो ही नहीं.
बहुजन विमर्श के कुछ प्रमुख बिंदु नीचे दिए जा रहे हैं. ये इस शोध की पूर्व मान्यताएं (हाइपोथिसिस ) भी हैं.
- सामान्य जीवन की परंपरा बहुजन-समाज की जीवन परंपरा है. यह स्थापित करने के लिए किसी तर्क की ज़रूरत नहीं है. यह लगभग पारिभाषिक है. बहुजन कहा ही उसे गया है, जो सामान्य है, अभिजात्य नहीं. हांलाकि खुलकर पर यह बात कहने का आशय यह है कि सामान्य जीवन को एक जीवन परंपरा के रूप में समझा जाये. ‘सामान्य जीवन’ एक असैद्धांतिकबुनियादी श्रेणी है. असैद्धांतिक इस अर्थ में कि इसकी कोई शर्त नहीं है. किसी भी सिद्धांत, धर्म, तकनीकी, समाज व्यवस्था आदि में इसके रूप और सार की कोई शर्त नहीं होती तथापि वह इन सबसे प्रभावित होता है. यह जीवन की वह परंपरा है जिसमें जीवन के किसी भी पक्ष (राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, ज्ञान, दार्शनिक इत्यादि) में कोई ऊपर का अथवा सत्तायुक्त आयाम बनने की न कोई प्रक्रिया होती है और न कोई चेष्टा. सहयोग की इसमें बड़ी और केन्द्रीय भूमिका होती है, प्रतिस्पर्धा की नहीं.
- लोकविद्या की परम्परा बहुजन-समाज की ज्ञान परम्परा है.
- स्वराज की परंपरा बहुजन-समाज की राज परंपरा है.
- संत परम्परा बहुजन-समाज की परंपरा है.
- स्वदेशी दर्शन बहुजन-समाज का दर्शन है.
- पंचायत की परंपरा बहुजन समाज द्वारा समाज के संगठन, संयोजन एवं नियमन (कानून एवं व्यवस्था) की परंपरा है. इसे इस देश के विधि-विधान की मौलिक परंपरा के रूप में देखा जा सकता है.
- समाज के वित्तीय संगठन, उत्पादन और लेन-देन की परम्पराएँ बहुजन-समाज में प्रचलित वितरित व्यवस्थाओं के विचारों के अनुकूल रही हैं.
- इन सभी बिंदुओं को आपस में गूंथना ही यह शोध है. कहा जा सकता है कि इस गूंथने का सक्रिय गतिशील रूप एक बहुजन ज्ञान संवाद है .
शोध की बनावट और उसका विस्तार इस दृष्टि से किया जाएगा कि इन मान्यताओं अथवा इस समझ के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रकाश पड़े. वे कितने सही हैं और कितने गलत, तथा उनका सार व स्वरुप क्या है, यह कई कोणों से सामने आए. बहुजन विमर्श बहुजन संवाद को चलाने का ठोस आधार देगा.
- अनुसंधान की पद्धति :
- यह अनुसंधान मोटे तौर पर बहुजन ज्ञान संवाद होगा, जिसकी एक मूल मान्यता यह होगी कि बहुजन समाज एक ज्ञानी समाज है तथा यह अनुसंधान उसके ज्ञान को नए समकालीन रूपों में प्रस्तुत करेगा.
- बहुजन-समाज के व्यावहारिक ज्ञान, वस्तुओं को बनाने के शिल्प और कला से तो सब परिचित हैं तथापि इन दक्षताओं की पृष्ठभूमि में इनका अपना दर्शन होता है इस बात को अनदेखा किया जाता है. बहुजन ज्ञान संवाद इस दर्शन को सार्वजनिक पटल पर प्रस्तुत करने के रास्ते बनाएगा.
- यह अध्ययन संवाद के रूप में किया जायेगा. तरह तरह के संवाद. एक-एक व्यक्ति से अलग-अलग बात करना, समूह में चर्चा करना, स्थानीय बाज़ारों और गांवों तथा बस्तियों को इस अध्ययन की दृष्टि से गहराई से देखना, रिसर्च करने वालों द्वारा एक दूसरे का स्थान लेते रहना व आपस में विस्तार से चर्चा करना आदि.
- इस अनुसंधान का घर किसानों और कारीगरों के बीच होगा, रोज़ की कमाई करने वाले ठेले-गुमटी-पटरी वालों तथा मजदूरों के बीच होगा, बड़े पैमाने पर स्त्रियों के विचारों, कार्यों, अनुभवों में होगा, एक शब्द में कहें तो उनके जीवन में होगा.
- संतों के अनुयायियों से बातचीत शोध का एक प्रमुख हिस्सा होगा. जैसे गोरखनाथ, गुरुनानक, कबीर साहब, संत रविदास, संत तुकाराम, बासवअन्ना और तमिल, मलयालम, तेलुगु, उरिया, बंगला, तथा विविध प्रदेशों के संत.
- सामान्य लोगों के साथ वार्ता का एक बड़ा हिस्सा इस बात का होगा कि प्रयास के साथ उन्हें लोकस्मृति, कुलस्मृति, ग्रामस्मृति आदि के संसार में ले जाया जाये और स्मृति के उन विश्वों में उत्खनन (excavation) के लिए प्रेरित किया जाये. यह एक महत्वपूर्ण प्रयोग होगा और यदि इसके जरिये सामान्य जीवन में संगठन, प्रबंधन, व्यवस्था और ज्ञान के प्रश्नों पर कुछ नया प्रकाश पड़ता दिखाई दे तो इसका विस्तार किया जायेगा. अध्ययन के दौरान इसकी जांच सतत चलती रहेगी. इस जांच का रूप भी प्रमुखतः लोगों से और आपस में वार्ता, गहराई से चिंतन और संत परंपरा से सन्दर्भों के मार्फ़त आकार लेगा.
- संवाद और शोध के विषयों पर लिखित शब्द की खोज होगी. इसके प्रमुख रूप से निम्नलिखित स्रोत हैं.
– संत वचन और कार्य
– भाषाई साहित्य. उदाहरण के लिए हिंदी क्षेत्र में प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, हजारीप्रसाद, चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’, शुकदेव सिंह आदि.
– अंग्रेजों द्वारा किये गए लेखन, जो उनके लेखकों के हो सकते हैं अथवा शासन की (सर्वेक्षण) रिपोर्ट के रूप में हो सकते हैं.
– सामाजिक पंचायतों/संगठनों की कार्यवाही की रिपोर्टें.
– प्रमुख जन आन्दोलन और उनके विचार, प्रेरणा, मुद्दे और संगठन के प्रकार
– भाषा, कला और दर्शन की दुनिया के विवरण.
- सक्रिय कर्म : इस शोध का एक हिस्सा सक्रिय कर्म का होगा. विशेष रूप से लोकविद्या आंदोलन, बौद्धिक सत्याग्रह और ज्ञान पंचायत तथा इस शोध कार्य के बीच जीवंत लेन -देन का सम्बन्ध होगा.
- जिम्मेदारियां :
क्रम | संवाद /शोध का विषय | कार्यकर्त्ता | सलाहकार | अवधि |
1. | उत्तर भारत की बहुजन समाज की संत परंपरायें | लक्ष्मण प्रसाद | वरिष्ठ पत्रकार
श्री सुरेश प्रताप सिंह |
एक वर्ष |
2. | बहुजन समाजों की राज परम्पराओं की विशेषताओं का संकलन | रामजनम | डॉ. पारमिता | ,, |
3. | बुनकर समाजों की ज्ञान परंपरायें | फ़ज़लुर्रहमान अंसारी | डॉ. मुनीज़ा खान | ,, |
4. | मल्लाह समाजों की ज्ञान परम्परायें | हरिश्चंद्र केवट | – | ,, |
5. | राजभर समाज की ज्ञान और राज परम्पराएँ | कमलेश | मास्टर शिवमूरत | ,, |
- प्रत्येक शनिवार को कार्यकर्ताओं की विद्या आश्रम पर बैठक होगी. महीने में एक दिवस सलाहकारों, कार्यकर्ताओं और विशेष अतिथियों के साथ विद्या आश्रम पर बहुजन ज्ञान विमर्श होगा.
- लोकविद्या आन्दोलन समूह के लोग जो अलग-अलग प्रान्तों में रहते हैं उनसे, हम उनके प्रान्तों की उपरोक्त विषयों से सम्बंधित जानकारी को उपलब्ध करने की अपेक्षा रखते हैं. इस तरह
क्रम | प्रान्त | व्यक्ति |
1. | बंगाल | डॉ. अभिजित मित्र |
2. | पश्चिम मध्य प्रदेश | संजीव कीर्तने |
3. | पूर्वी मध्य प्रदेश | अवधेश कुमार |
4. | महाराष्ट्र | डॉ. गिरीश सहस्रबुद्धे, डॉ. वीणा देवस्थली |
5. | कर्णाटक | डॉ. जे.के. सुरेश |
6. | तेलंगाना | . |
7. | आंध्र प्रदेश | डॉ. कृष्णराजुलु |
8. | तमिलनाडु | डॉ. जी. सिवरामकृष्णन |
9. | केरल | डॉ. रामनाथन कृष्ण गाँधी |
चित्रा सहस्रबुद्धे
समन्वयक, विद्या आश्रम