What is Lokavidya?
- Knowledge with people in society is lokavidya.
- Lokavidya resides in society and outside colleges and universities.
- Those who do not go to the University are not ignorant. They acquire knowledge and talent from society to live their lives. They are masters of lokavidya, or lokavidyadhar.
- Farmers, all kinds of artisans, adivasis, service and maintenance workers, small shop-owners, folk artists, and women all acquire knowledge on their own from diverse sources, and on that strength, lead their social lives. Together they constitute the Lokavidya Samaj.
- Their modes of thought, social values, paradigms of reason and justice, organizational thinking, their mutual relations, their relations with nature and their knowledge of these, their skills and talents, their art and philosophy – all these together shape the world of knowledge that is Lokavidya.
- Lokavidya lives in society. It cannot be imprisoned in a book, or a caste, or a religion, or a library, or a university, or in computer. It resides among people and progresses with them.
- Lokavidya is renewed every moment. Depending on their needs and those of the society and guided by their wisdom people incessantly experiment and add to lokavidya.
- Lokavidya is the fountain of strength of the society. It is not just that people earn their livelihood on the basis of lokavidya. Lokavidya is at the heart of the relations people build with the society and Nature. It endows them with the sense to discern right from wrong, with the drive and the ability to organize and fight against injustice as well as to weave values and logic together into a world view.
- Lokavidya sees no separation between physical and mental work. No work is as an instance of just physical labour, but always a fusion of knowledge and labour. In other words, in the world of lokavidya no one is just a labourer, and everyone is knowledgeable.
- Only when lokavidya has the same status as university knowledge can the social and economic inequalities in society be eradicated.
- Lokavidya Jan Andolan is a knowledge movement. It aims at an equal status in the world of knowledge for lokavidya, and for lokavidya samaj in the larger society.
लोकविद्या क्या है?
- समाज में लोगों के पास जो ज्ञान होता है उसे लोकविद्या कहते हैं.
- लोकविद्या कालेज और विश्वविद्यालय से बाहर समाज में ही बसती है.
- जो लोग विश्वविद्यालय नहीं जाते वे अज्ञानी नहीं होते. वे समाज से ज्ञान और विद्या हासिल कर अपनी ज़िन्दगी चलाते हैं. उन्हें लोकविद्या के स्वामी या लोकविद्याधर कहते हैं.
- किसान, हर तरह के कारीगर, आदिवासी, मरम्मत और सेवा कार्य करने वाले, छोटे दुकानदार, लोक कलाकार, और महिलाएं ये सब विविध स्रोतों से अपने बूते ज्ञान हासिल करते हैं और इस ज्ञान के बल पर समाज में अपनी भागीदारी करते हैं. सभी लोकविद्याधर मिलकर लोकविद्या-समाज बनाते हैं.
- लोगों के सोचने का तरीका, समाज के मूल्य, तर्क की विधाएं, संगठन के विचार, आपस में और प्रकृति के साथ उनके रिश्ते तथा उनकी जानकारियाँ, हुनर, कला व दर्शन सभी कुछ मिलकर ज्ञान की जो दुनिया बनाते हैं, उसे लोकविद्या कहते हैं.
- लोकविद्या समाज में बसती है. इसे किसी किताब, जाति, धर्म, ग्रंथालय, विश्वविद्यालय अथवा कंप्यूटर में बाँधा नहीं जा सकता. यह लोगों के पास जिंदा रहती है और उनके द्वारा विकसित होती है.
- लोकविद्या नित-नवीन होती है. अपनी और समाज की ज़रूरतों के चलते लोग अपने अनुभव के आधार पर अपनी तर्क बुद्धि और प्रयोगों के जरिये लोकविद्या में सतत् इजाफा करते रहते हैं.
- समाज की शक्ति का आधार लोकविद्या में है. लोकविद्या के बल पर लोग केवल अपनी जीविका ही नहीं चलाते बल्कि प्रकृति और समाज से अपने रिश्ते बनाते हैं, सही-गलत की पहचान करते हैं, संगठन बनाते हैं, अन्याय का मुकाबला करते हैं और मूल्यों और तर्कों की बुनावट से अपनी विश्वदृष्टि बनाते हैं.
- लोकविद्या श्रम और बुद्धि को अलग-अलग नहीं करती. लोकविद्या में कोई कार्य केवल श्रम का नहीं माना जाता, बल्कि श्रम और ज्ञान के मेल में ही देखा जाता है. दूसरे शब्दों में लोकविद्या मेहनत का काम करने वाले किसी व्यक्ति को मात्र मज़दूर नहीं मानती, बल्कि ज्ञानी व्यक्ति मानती है.
- समाज में फैली सामाजिक और आर्थिक गैर-बराबरी को तभी दूर किया जा सकता है जब लोकविद्या को विश्वविद्यालय की विद्या के बराबर मान और मूल्य मिले.
- लोकविद्या जन आन्दोलन एक ज्ञान आन्दोलन है. यह बृहत् समाज में लोकविद्या और लोकविद्या-समाज के लिए बराबरी का दर्जा हासिल करने का लक्ष्य रखता है.
लोकविद्या म्हणजे काय?
- English
-
What is Lokavidya?
- Knowledge with people in society is lokavidya.
- Lokavidya resides in society and outside colleges and universities.
- Those who do not go to the University are not ignorant. They acquire knowledge and talent from society to live their lives. They are masters of lokavidya, or lokavidyadhar.
- Farmers, all kinds of artisans, adivasis, service and maintenance workers, small shop-owners, folk artists, and women all acquire knowledge on their own from diverse sources, and on that strength, lead their social lives. Together they constitute the Lokavidya Samaj.
- Their modes of thought, social values, paradigms of reason and justice, organizational thinking, their mutual relations, their relations with nature and their knowledge of these, their skills and talents, their art and philosophy – all these together shape the world of knowledge that is Lokavidya.
- Lokavidya lives in society. It cannot be imprisoned in a book, or a caste, or a religion, or a library, or a university, or in computer. It resides among people and progresses with them.
- Lokavidya is renewed every moment. Depending on their needs and those of the society and guided by their wisdom people incessantly experiment and add to lokavidya.
- Lokavidya is the fountain of strength of the society. It is not just that people earn their livelihood on the basis of lokavidya. Lokavidya is at the heart of the relations people build with the society and Nature. It endows them with the sense to discern right from wrong, with the drive and the ability to organize and fight against injustice as well as to weave values and logic together into a world view.
- Lokavidya sees no separation between physical and mental work. No work is as an instance of just physical labour, but always a fusion of knowledge and labour. In other words, in the world of lokavidya no one is just a labourer, and everyone is knowledgeable.
- Only when lokavidya has the same status as university knowledge can the social and economic inequalities in society be eradicated.
- Lokavidya Jan Andolan is a knowledge movement. It aims at an equal status in the world of knowledge for lokavidya, and for lokavidya samaj in the larger society.
- हिन्दी
-
लोकविद्या क्या है?
- समाज में लोगों के पास जो ज्ञान होता है उसे लोकविद्या कहते हैं.
- लोकविद्या कालेज और विश्वविद्यालय से बाहर समाज में ही बसती है.
- जो लोग विश्वविद्यालय नहीं जाते वे अज्ञानी नहीं होते. वे समाज से ज्ञान और विद्या हासिल कर अपनी ज़िन्दगी चलाते हैं. उन्हें लोकविद्या के स्वामी या लोकविद्याधर कहते हैं.
- किसान, हर तरह के कारीगर, आदिवासी, मरम्मत और सेवा कार्य करने वाले, छोटे दुकानदार, लोक कलाकार, और महिलाएं ये सब विविध स्रोतों से अपने बूते ज्ञान हासिल करते हैं और इस ज्ञान के बल पर समाज में अपनी भागीदारी करते हैं. सभी लोकविद्याधर मिलकर लोकविद्या-समाज बनाते हैं.
- लोगों के सोचने का तरीका, समाज के मूल्य, तर्क की विधाएं, संगठन के विचार, आपस में और प्रकृति के साथ उनके रिश्ते तथा उनकी जानकारियाँ, हुनर, कला व दर्शन सभी कुछ मिलकर ज्ञान की जो दुनिया बनाते हैं, उसे लोकविद्या कहते हैं.
- लोकविद्या समाज में बसती है. इसे किसी किताब, जाति, धर्म, ग्रंथालय, विश्वविद्यालय अथवा कंप्यूटर में बाँधा नहीं जा सकता. यह लोगों के पास जिंदा रहती है और उनके द्वारा विकसित होती है.
- लोकविद्या नित-नवीन होती है. अपनी और समाज की ज़रूरतों के चलते लोग अपने अनुभव के आधार पर अपनी तर्क बुद्धि और प्रयोगों के जरिये लोकविद्या में सतत् इजाफा करते रहते हैं.
- समाज की शक्ति का आधार लोकविद्या में है. लोकविद्या के बल पर लोग केवल अपनी जीविका ही नहीं चलाते बल्कि प्रकृति और समाज से अपने रिश्ते बनाते हैं, सही-गलत की पहचान करते हैं, संगठन बनाते हैं, अन्याय का मुकाबला करते हैं और मूल्यों और तर्कों की बुनावट से अपनी विश्वदृष्टि बनाते हैं.
- लोकविद्या श्रम और बुद्धि को अलग-अलग नहीं करती. लोकविद्या में कोई कार्य केवल श्रम का नहीं माना जाता, बल्कि श्रम और ज्ञान के मेल में ही देखा जाता है. दूसरे शब्दों में लोकविद्या मेहनत का काम करने वाले किसी व्यक्ति को मात्र मज़दूर नहीं मानती, बल्कि ज्ञानी व्यक्ति मानती है.
- समाज में फैली सामाजिक और आर्थिक गैर-बराबरी को तभी दूर किया जा सकता है जब लोकविद्या को विश्वविद्यालय की विद्या के बराबर मान और मूल्य मिले.
- लोकविद्या जन आन्दोलन एक ज्ञान आन्दोलन है. यह बृहत् समाज में लोकविद्या और लोकविद्या-समाज के लिए बराबरी का दर्जा हासिल करने का लक्ष्य रखता है.
- मराठी
-
लोकविद्या म्हणजे काय?